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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |

उत्तर -

सतत जीविका प्राप्ति

लगभग 90 करोड़ लोग पूर्ण गरीबी में जीते हैं। उनकी जीविका प्राकृतिक संसाधनों व प्राकृतिक उत्पादों पर आवश्यक रूप से निर्भर करती है। अल्पविकसित देशों के लोग अपने प्राकृतिक उत्पादों को बेचने के लिए मजबूर हैं। उनकी जीविका प्राथमिक उत्पादों जैसे कृषि व जंगल उत्पाद, खनिज, मछली आदि के निर्यात से कमाई से चलती है। बढ़ता हुए उपभोक्तावाद तीव्र शोषण की माँग करता है और अतिशोषण से संसाधनों का क्षय होता है। फिर किसी भी आवश्यक वस्तु की अचानक कमी (crush) से व्यापार की शर्तें उनके विपरीत हो जाती हैं। वर्तमान में लैटिन अमेरिका में 80 प्रतिशत गरीब, एशिया में 50 प्रतिशत गरीब और अफ्रीका में 50 प्रतिशत गरीब ऐसे सीमान्तीय भूमियों में रह रहे हैं जहाँ पर पर्यावरण पतन की अत्यधिक संभावनाएँ हैं। मरुस्थलीकरण और भू-पतन के कारण 1984 में 13.5 करोड़ लोगों की जीविका पर बुरा असर पड़ा। 1977 में यह संख्या 7.7 करोड़ थी। भूमि तथा अन्य प्राकृतिक साधनों पर दबाव गरीब और अमेरिका तथा जापान जैसे अमीर देशों की जनता को सतत जीविका से वंचित करता है।

सतत जीविका का राष्ट्रों की सतत अर्थव्यवस्था से सम्बंध है। एक अति ऋणग्रस्त देश जिसे अचानक ऋण वापस करना पड़ता है, अपनी प्राथमिक आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन तीव्र कर देता है जिससे उनकी कीमतें और भी कम हो जाती हैं। 1980 व 1991 के दौरान 33 प्राथमिक उत्पादों के भारित सूचकांक (weighed index) में 105 से 57 की गिरावट आई और तीसरी दुनिया की आवश्यक वस्तुओं चाय तथा कॉफी के निर्यात में 12.2 करोड़ की हानि सहनी पड़ी। तंजानिया में गरीब लोगों की आधी नकद कमाई लकड़ी के कोयले, शहद, जलाऊ लकड़ी व जंगली फलों जैसे जंगल के उत्पादों की बिक्री से होती हैं यही बात भारत, ब्राजील आदि जैसे संक्रमणकालीन देशों सहित अन्य गरीब देशों के सम्बंध में सत्य है। सततशीलता का एक आनुपातिक विश्लेषण यह प्रदर्शित करता है कि जापान तथा इण्डोनेशिया में मनुष्य - निर्मित पूँजी स्टॉक उच्च दर पर संचित होता हैं जापान जैसे औद्योगिक तौर पर विकसित देश के पास प्राकृतिक पूँजी का छोटा स्टॉक है और परिणामतः जिस स्टॉक का वहाँ क्षय होता है, वह बहुत थोड़ा है जिससे कि देश को अत्यधिक सतत माना जाता है। दूसरी ओर इण्डोनेशिया के पास प्राकृतिक पूँजी की प्रचुरता है और (निर्यात के लिए) वह अत्यधिक मात्रा में प्राकृतिक पूँजी का क्षय करता है जिससे उसे सीमान्तीय गैर- सतत माना जाता है। प्रत्येक देश में सतत विकास का अर्थ होगा कि वे अपने संसाधन प्रयोग के अनुपात में संसाधन एवं विकास के निमित्त समुचित निवेश ही करें।

सतत जीविका प्राकृतिक तथा भौतिक पर्यावरण में सुधार व सुरक्षा की पद्धति है। 1997. में सतत विकास को प्रोत्साहन देने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय विकास से संबंधित 1997 का श्वेत पत्र अन्तर्राष्ट्रीय विकास विभाग (Department for Internatioal Development-DFID) का वचन देता है। इस श्वेत-पत्र में सतत जीविका को इस तरह से परिभाषित किया गया है- 'जीविका में जीने के साधन के लिए आवश्यक क्षमताएँ, सम्पत्ति (भौतिक तथा सामाजिक संसाधन) और गतिविधियाँ शामिल हैं। जीविका सतत है जबकि वह तनावों तथा आपातों का सामना कर सके तथा उनसे उबर सके और वर्तमान तथा भविष्य में सतत संसाधन पूँजी सम्पत्ति को दुर्बल किए बिना अपनी क्षमताओं तथा सम्पत्तियों को पोषित अथवा उनमें वृद्धि कर सके।

बहुराष्ट्रीय व्यवसाय उच्च खर्चीले उत्पादन क्षेत्र में कम खर्चीले उत्पादन क्षेत्र में स्थानान्तरित हो जाते हैं। वे स्थानीय क्षेत्र में नई उत्पादन व्यवस्थाओं को जन्म देते हैं जिनका स्थानीय समुदायों तथा उनके संसाधन उपयोग पद्धतियों व जीवन शैली कार्य-पद्धतियों से कोई सम्बन्ध नहीं होता। ये समुदाय अपनी जमीन तथा संपत्तियों से वंचित हो जाते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय अनुबंध उनके हम पर दृढ़ रहने और संसाधनों पर पहुँच की संभावनाओं को कम कर देते हैं। वर्तमान काल में पाँच प्रकार की पूँजी परिसम्पत्ति की रूपरेखाएँ हैं जिनसे व्यवस्था अपनी जीविका चाहता है-

(1) प्राकृतिक - इसमें, प्राकृतिक संसाधन के भण्डार होते हैं, जिनसे जीविका के लिए आवश्यक संसाधन मिलते हैं (जैसे-भूमिक, जल, वन्य जीवन, जैविक विविधता, पर्यावरण संसाधन)।

(2) सामाजिक - सामाजिक संसाधन (नेटवर्कों, समूह की सदस्यता, विश्वास के सम्बंध, समाज की व्यापक संस्थाओं में पहुँच) जिनसे लोग जीविका की तलाश करते हैं।

(3) मानव - कुशलता, ज्ञान, कार्य करने की क्षमता और अच्छा स्वास्थ्य जो विभिन्न जीविका युक्तियों के अनुशीलन में क्षमता होने के लिए जरूरी है।

(4) भौतिक - मूलभूत ऊपरी संरचना ( यातायात, आश्रय, ऊर्जा और संचार) तथा उत्पादन उपकरण एवं साधन जो लोगों को जीविका का अनुशीलन करने योग्य बनाते हैं।

(5) वित्तीय - वित्तीय संसाधन (बचत, उधार, लगातार प्रेषित धनराशि वनस्पति या पेंशन) जो लोगों को उपलब्ध हैं और जो उन्हें भिन्न जीविका विकल्प प्रदान करते हैं।

इन पूँजी परिसम्पत्तियों का चुनाव एक वस्तुनिष्ठ अभ्यास है लेकिन इस बात का मूल्यांकन करने के लिए यह एक अच्छी शुरूआत का बिन्दु हैं कि संपत्तियों का कौन-सा मिश्रण वास्तव में सतत जीविका में परिवर्तित होता है। आदर्श तौर पर जीविका सतत तब है जब सभी हिस्सेदारों का सशक्तीकरण हो और संपत्तियों पर उनकी पहुँच में वृद्धि होती रहे। इसके लिए यथास्थिति में परिवर्तन की आवश्यकता है जिसका आशय यह है कि समानता की ओर शक्ति सम्बंधों में स्थानान्तरण हो। इसकी प्राप्ति के लिए हमें शासन प्रबंध की ओर ध्यान से देखना होगा। शासन प्रबंधन के वे प्रमुख मुद्दे जो नियमों व निहित शक्ति संरचनाओं में एक सकारात्मक सतत जीविका परिणाम के लिए परिवर्तन चाहते हैं, निम्नलिखित हैं-

(1) जन- केन्द्रित
(2) संवेदनशील व भागीदारी
(3) बहुस्तरीय
(4) भागीदारी
(5) सततशीलता
(6) गतिशील

इन मुद्दों के लिए निम्नलिखित पर ध्यान देना आवश्यक होगा-

उचित ज्ञान - ज्ञान का उपयुक्त होने के लिए जरूरी है कि उसकी जड़ समुदाय के संसाधन उपयोग नमूने में हो और राजनीतिक तौर पर निष्पक्ष हो। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि संस्थाओं के अन्दर ऐसे सूत्र हों जो इस ज्ञान को निर्णय लेने वालों तक पहुँचा सकें। प्रचलित व्यवस्थाएँ यह बताती हैं कि औपचारिक या नियमबद्ध प्रकार के ज्ञान पर अत्यधिक जोर दिया जाता है। यहाँ इस बात की अपेक्षा की जाती है कि स्थानीय गतिशीलता और संसाधनों के उपयोग के स्थानीय विभेदीकृत नमूनों के अनुकूल सामुदायिक व्यवहारों में निहित व्यवहारिक व अव्यक्त ज्ञान को नकारा जाता है। इसीलिए आवश्यकताओं के मूल्यांकन और कार्यवाही पर निर्णय सबके विचारों पर आधारित होना चाहिए। इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो गरीब व सीमान्तीय लोग हैं और जिन्हें, औपचारिक शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत औपचारिक ज्ञान न मिला हो। इस सम्बंध में भागीदारी गरीबी मूल्यांकन (Participatory Poverty Assessments) गरीबों द्वारा अपनी आवश्यकताओं को परिभाषित करने और उन्हें प्रभावित करने वाले निर्णयों में भाग लेने की ओर एक प्रमुख कदम है; भागीदारी गरीबी मूल्यांकन राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर प्रभाव दिखला रहे हैं। (राष्ट्रीय भागीदारी गरीबी मूल्यांकन युगाण्डा व जाम्बिया तथा अन्य जगहों में बनाए गए हैं)। यह प्राकृतिक संसाधन के स्वामित्व व प्रबंधन नमूनों को पुनः उन्नतशील बनाता है और उस समग्र प्रभावशीलता को बढ़ाता है जोकि पर्यावरण प्रक्रियाओं की जनता की रोजमर्रा की समझ व ज्ञान में निहित है।

समता (Equity) - सतत विकास नीतियों का आधार समता हैं संसाधन प्रयोग नीतियों एवं उपागमों का कौन निर्णय करें और उनसे किन्हें लाभ मिलता है? ऐसे प्रश्न एक समतापूर्ण आर्थिक आधार की आवश्यकता का परामर्श देते हैं संस्थाएँ मूर्त सम्पत्ति (विशेषकर भूमि, भू-अधिकार व सेवा के अधिकारों की प्राप्ति में तथा उन प्रतिबंधों की समाप्ति में जो गरीब को साधनहीन व कमजोर बनाते हैं) के वितरण में तथा विभिन्न छद्मों में मतभेदों के विरुद्ध सुरक्षा के लिए उपायों को लागू करने में प्रमुख भूमिका निभा सकती है। समता के सिद्धान्त की आवश्यकता इस मार्गदर्शन के लिए आवश्यक है कि संस्थाएँ संसाधन व सम्पत्ति पर पहुँच का किस प्रकार प्रबंध करें और किन संपत्तियों की आवश्यकता है और उनका निर्माण (प्रौद्योगिकी, ऊपरी संरचना के रूप में) हो। समतापूर्ण अभिवृद्धि मानव मात्र के लिए दीर्घकालीन लाभों को सुनिश्चित करती है।

भागीदारी - प्रभावशाली नीति और उद्दण्डता व संदेह से बचाव के लिए तब भागीदारी आवश्यक है जब संस्थाएँ अन्य लोगों की ओर से निर्णय लेने के अधिकार को प्राप्त कर लेती हैं। जीविका में लगे समूहों के पास राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपने हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए संसाधन व राजनीतिक प्रभाव की कमी होती है। इसलिए ऐसी पद्धतियों की तलाश होनी जरूरी है जिनसे ऐसे समूह (उदाहरण के लिए किसान) अपनी चिन्ताओं को क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय निर्णय निर्धारण में व्यक्त इस रूप में कर सकें जिससे कि उनकी चिन्ताओं का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व हो सके।

लचीला / अपनाने योग्य - सतत जीविका की संस्थाएँ ऊपर से नीचे धीरे-धीरे या · गिरावट उपागमों की विरोधी हैं। उनमें परिवर्तनशील राजनीतिक व पारिस्थितिकी परिस्थितियों को निबाहने के लिए आवश्यक लचीलापन है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कार्यविधि को अपनाने में किसी गलती, नित्य क्रिया या एजेन्सी के कारण समस्या न हो। यह विशेष रूप से वहाँ महत्वपूर्ण है जहाँ संस्थाओं को बदलती संसाधन आवश्यकताओं के प्रति तत्काल प्रतिक्रियाओं व प्रत्युत्तर देना पड़ता है। यह लचीलापन, सुरक्षा, सृजनात्मकता व नव-प्रवर्तन ( innovation) की व्यवस्था करती है।

लागू करने योग्य - किसी विशेष समस्या का हल सुझाने वाली नीतियों को प्रायः अत्यधिक प्रतिकूल दशाओं में लागू करने की समस्या के प्रति सचेत होना होता है। नीतियों को लागू करने में असफलता से संस्था के प्रति विश्वास व आदर में कमी आती है। समग्र सफलता के लिए संस्था के प्रति विश्वास व आदर का होना अत्यंत आवश्यक है। लागू करने की कार्य-विधियाँ स्पष्ट एवं वास्तविक होनी चाहिए और प्रतिवेदन (report) तंत्र पारदर्शिता यह प्रदर्शन करने के लिए आवश्यक है कि क्या नीति में किए गए वायदों को पूरा किया गया है अथवा नहीं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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